कबीरा कह गये हो तुम मीठी वाणी
कबीरा कह गये हो तुम मीठी वाणी,
मीठा नही संसार है,
तीखे बोल जो कोई बोले,
पा ना सके वह प्यार है।
प्यार नहीं जो जग मे करता,
कैसे पाये वह सुख चार हो,
बीज नहीं बोया प्रेम का जो,
फल मिठा कैसे पाये वो।
सत्य वचन तुम कह गये कबीरा,
सत्य तेरा आधार है,
गुरु वाणी जो पा ले जग मे,
पाया वही भगवान हो।
डगर नहीं है मुश्किल इस जग का,
प्रेम डगर वह मार्ग हो,
मिल जाएगी मंजिल शांति की,
बढ़ेगा वृक्ष होगा फल रासदार हो।
संत कबीर दाता है जग के,
कर गये कितने कल्याण हो,
प्रेम रूप वाणी से अपने,
भक्ति भजन हुआ सकार हो।
कबीरा कह गये हो तुम मीठी वाणी,
मीठा नही संसार है।
रचनाकार
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर