— कन्या से सास तक —
कन्या के रूप में जन्म हुआ
तो पूजने लगा सारा संसार
तेरा ही तो एक रूप है मईया
फिर भी है तू क्यूं लाचार
छोटे पन में सब ने गोद उठाया
बड़ी होने पर डोली में बिठाया
छोड़ के बाबुल का घर अब
ससुराल ने आँखों पर बिठाया
हुई गर्भवती तो घर संसार
इस कद्र प्रफुल्लित हुआ
सास ने मईया से यह विचार लगाया
दे दे दर्शन माता अब मेरे घर आ माता
समय गुजरा हुआ कन्या का आगमन
सास के चेहरे का जैसे रंग उड़ाया
बोली सब से यह क्या हुआ
बेटे की जगह बेटी ने स्थान बनाया
सोचता हूँ यह कैसी विडंबना है
औरत होकर कन्या से मोहभंग बनाया
खुद को कैसे भूल गयी यह सास
इस ने भी तो कन्या का रूप ही तो धाया
न होगी कन्या तो कैसे घर को चलाओगे
क्या इतने काफिर हो की अब तुम
कन्या के लिये ख़ुशी नही मनाओगे
याद रखना दोस्तों मेरी इस बात को
बेटे से ज्यादा , बेटी से ही सदा सुख पाओगे
अजीत कुमार तलवार
मेरठ