कन्या भ्रूण हत्या
कन्या भ्रूण हत्या
धरती पर फैली हैं हरियाली,
क्यो इसको नजर लगाते हो |
बेटी होती है धरा समान,
क्यो इसको कोख मे मरवाते हो
रेत के टीले पर बैठ,
क्यो करते हो नींव से खिलवाड़,
नींव अगर कच्ची होगी,
मजबूत भवन कैसे बनाओगे,
कच्ची नींवो पर क्यो
अपने घर बनाते हो |
बेटी को क्यो कोख मे मरवाते हो |
बेटी से खुशहाली है जीवन मे,
बेटो का तो पता नही,
बेटी ना रही जीवन मे,
तो खुशहाली कहाँ से लाओगे,
बेटी की कीमत पर क्यो
खुशहाली गंवाते हो |
बेटी को क्यो कोख मे मरवाते हो |
© पूरन भंडारी सहारनपुरी
मैं, (पूरन भंडारी ), स्वप्रमाणित करता हूँ कि प्रविष्टि में भेजी रचनाये नितांत मौलिक हैं, तथा मैं इस काव्य रचना को प्रकाशित करने की अनुमति प्रदान करता हूँ, रचना के प्रकाशन से यदि कापीराईट का उल्लंघन होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी मेरी होगी ।
पूरन भंडारी सहारनपुरी
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