कन्या की पुकार
न पूजो पाँव तुम मेरे
न मानो तुम मुझे देवी
मगर इतना करम कर दो
गला दो रूढी की बेडी
मुझे वर्षों से आँका कम
रखा दर्जे पर दोयम
सजाया मंदिर में लेकिन
किया मुश्किल मेरा जीवन
खोल दो पंखों के बंधन
मै लूँ परवाज अब थोडी
न पूजो पाँव तुम मेरे
न मानो तुम मुझे देवी
मगर इतना करम कर दो
गला दो रूढी की बेडी
न बाँधो अब मेरा रस्ता
न रक्खो हाल में खस्ता
नहीं जीवन मेरा सस्ता
सुनो अब ढील दो मुझको
चढूँ आकाश की सीढी
न पूजो पाँव तुम मेरे
न मानो तुम मुझे देवी
मगर इतना करम कर दो
गला दो रूढी की बेडी
अपर्णा”रानू”