कन्यादान क्यों और किसलिए [भाग६]
इस रस्म के कारण मेरे पापा
सारे रिशते बदल जाएँगे।
फिर न इन रिश्तों पर अधिकार,
किसी का किसी पर रह जाएगा।
फिर मैं क्या पापा आपको ,
पहले सा गला लगा पाऊँगी।
क्या पहले जैसा ही गोद में
मैं सर रखकर सो पाऊँगी।
जब कभी मैं थक कर पापा
इस घर में कभी आऊँगी ।
क्या माँ के आँचल पर पहले
जैसा मैं हक जता पाऊँगी।
माँ के आँचल पर क्या पापा ,
पहले सा हक हो पाएगा ।
क्या पहले जैसा फिर पापा
माँ के आँचल में छुप पाऊँगी।
आपने उस माँ के लिए
कभी सोचा हैं पापा।
जो अपनी माँ को घर छोड़कर थी
यहाँ पर आई,
और उसकी बेटी भी पापा,
उसके पास न रह पाई ।
जब दान आपने मेरा किया था।
उनका अंग भी कटा था पापा।
क्या उनके जख्मों का एहसास
कभी आपने किया है पापा।
आपने कभी सोचा हैं पापा,
उस माँ पर क्या गुजरती हैं।
जिसके माँ के दिल के टुकड़े पर ,
इस रस्म ने हैं प्रहार किया।
उस माँ के जख्म का दर्द,
कभी क्या कोई भर सकता हैं ।
जिसकी आँखे इस रस्म के बाद ,
कभी सूखी नहीं पड़ती है।
मैं तो यह भी मानती हूँ पापा,
आपने भी इस रस्म को,
दिल से नहीं निभाया होगा।
इस रस्म निभाने के बाद पापा,
आपने भी कहाँ चैन से सोया होगा ।
मेरी यादों ने आपको पापा
हर रोज आकर बहुत रूलाया होगा ।
आपने अपने ऊपर भी,
कई बार गुस्सा जताया होगा।
कई दिनों तक आपने भी पापा,
ठीक से नहीं खाया होगा।
~अनामिका