Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Mar 2018 · 4 min read

कद्रदान

शाम पूरी तरह ढलने को थी ;क्योंकि सब जगह लाइटें जल उठीं थीं। हमेशा की तरह बाज़ार सजा हुआ था। तमाम कोठों भीतर का माहौल अमूमन वही था, जैसा विभाजन के दौर में लिखी गई सआदत हसन मंटो की अनेक कहानियों में दिखाई पड़ता है। वहां मौजूद लड़कियों के चेहरों से ही नहीं बल्कि समस्त वातावरण, दरो-दीवारों, छतों, से भी वासना टपक रही थी। ज़ीनों से चढ़ते उतरते शौक़ीन लोग। उन्हें तरह-तरह की अदाओं से लुभाती लड़कियाँ, साक्षात् काम को आमन्त्रण दे रहीं थी। बाजार की सड़कों में भी यत्र-तत्र से आती फूलों की महक राहगीरों को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। कुल मिलाके कहना यह कि समस्त वातावरण रमणीय बना हुआ था। कोई दलाल लेन-देन को लेकर ग्राहक से बहस, लड़ाई-झगड़ा कर रहा था, तो कोई बड़े प्रेम से ग्राहक को फंसा रहा था। हलवाई की कढ़ाई में समोसे और गरमा-गरम जलेबियाँ तैयार की जा रही थी। जिन्हें करीने से थालियों में सजाया गया था। हर कोई अपनी धुन में मग्न था और अपने मनसूबों को अंजाम देने में व्यस्त था।

एक व्यक्ति जो अपने-आप में मसरूफ़ था। तभी संगीत की मधुर स्वर लहरी उसके कानों में पड़ी तो वह बेचैन हो गया। वह आवाज़ की दिशा में खिंचता चला गया। पता नहीं कौन-सी कशिश थी कि, चाहकर भी वह स्वयं को रोक न सका। गीत को गायिका ने बड़ी कुशलता के साथ गाया था। यकायक वह बड़बड़ाने लगा, “यही है! हाँ, हाँ …. यही है, वो गीत जो बरसों पहले सुना था।” गीत को सुनकर, वह पागलों की तरह बदहवास-सा हो गया था। चेहरे से वह लगभग 55-60 बरस का जान पड़ता था। उसने लगभग पचास बरस पूर्व यह गीत ग्रामोफोन पर सुना था। इसके पश्चात उसने हर तरह का गीत-संगीत सुना — फ़िल्मी, ग़ैर-फ़िल्मी, सुगम संगीत से लेकर शास्त्रीय संगीत भी मगर वैसी तृप्ति न मिल सकी। जैसी इस गीत में थी। उस गीत की खातिर वह अनेक शहरों के कई संगीत विक्रय केंद्रों (म्यूजिक स्टोर्स) से लेकर बड़ी-बड़ी सभाओं और महफ़िलों में गया। मगर अफ़सोस वह गीत दुबारा कहीं सुनने को न मिल सका। यहाँ तक कि इंटरनेट पर, यू-टूब में भी उसने गीत के बोलों को तलाश किया। किंतु व्यर्थ वहां भी वह गीत उपलब्ध नहीं था। आज पचास वर्षों बाद उसकी यह उम्रभर की तलाश ख़त्म हुई थी। अतः उसका दीवाना होना लाज़मी था। वह निरन्तर आवाज़ की दिशा में बदहवास-सा बढ़ता रहा। आवाज़ कोठे के प्रथम तल से आ रही थी। एक पुराने से ग्रामोफोन पर उस गीत का रिकार्ड बज रहा था। वह हैरान था! कम्प्यूटर और मोबाइल के अत्याधुनिक दौर में कोई आज से पचास-साठ साल पुराने तरीके से पुराना गाना सुन रहा था। शायद कोई उससे भी बड़ा चाहने वाला यहाँ मौज़ूद था।

“आप बड़े शौक़ीन आदमी मालूम होते हैं, बाबू साहिब।” कोठे की मालकिन शबाना ने अपनी ज़ुल्फ़ों को झटका देते हुए कहा।

“शौक़ीन! ये गीत …. ओह मैं कहाँ हूँ?” वह व्यक्ति किसी नींद से जागा था।

“आप सही जगह आये हैं हुज़ूर। यहाँ हुस्न का बाज़ार सजा है।” शबाना ने ताली बजाई और लगभग दर्जनभर लड़कियां एक कतार से कक्ष में प्रवेश कर गई।

“माफ़ करना मैं रास्ते से गुज़र रहा था कि गीत के बोल मेरे कानों में पड़े– बांसुरी हूँ मैं तिहारी, मोहे होंठों से लगा ले साँवरे।” उसने उतावला होकर कहा।

“ये तो गुजरे ज़माने की मशहूर तवायफ़ रंजना बाई का गाया गीत है। जिसे गीत-संगीत के शौकीन नवाब साहब ने रिकार्ड करवाया था। इसकी बहुत कम प्रतियाँ ही बिक पाईं थी। फिर ये गीत हमेशा-हमेशा के लिए गुमनामी के अंधेरों में खो गया था। यूँ समझ लीजिए ये गीत तब का है जब पूरे हिंदुस्तान में के.एल. सहगल के गाये गीतों की धूम थी।” शबाना ने आगंतुक को गीत से जुड़ा लगभग पूरा इतिहास बता दिया।

“क्या मैं आपसे एक सवाल पूछ सकता हूँ?” शाबाना ने सिर हिलाकर अपनी स्वीकृति दी तो उसने अपना सवाल पूछा, “आप आज भी इसे ग्रामोफोन पर सुन रही हैं। वजह जान सकता हूँ क्यों?”

“रंजना बाई मेरी नानी थीं। मेरी माँ भी अक्सर उनका यह गीत इसी प्रकार ग्रामोफोन पर सुना करती थी। उन्होंने मुझे बताया था कि, यह ग्रामोफोन मेरी नानी ने उस ज़माने में ख़रीदा था। जब यह शहर के गिने-चुने रईसों के पास ही हुआ करता था।”

“ओह! आप तो उनकी मुझसे भी बड़ी प्रशंसक हैं। मेरे पास हज़ार रूपये हैं। तुम चाहों तो ये रखलो और मुझे यह रिकार्ड दे दो।” उस कद्रदान ने जेब से हज़ार का नोट निकलते हुए कहा।

“हज़ार रूपये में तो तुम पूरी रात ऐश कर सकते हो बाबूजी। इस बेकार से पड़े रिकार्ड पर क्यों एक हज़ार रूपये खर्च करते हो।” शबाना ने फिर से डोरे डालते हुए कहा।

“यह गीत मैंने आठ-दस बरस की उम्र में सुना था….” इसके पश्चात उसने इस गीत के पीछे अपनी दीवानगी की पूरी राम-कहानी शबाना को कह सुनाई। फिर अपनी दूसरी जेब से एक और नोट निकलते हुए कहा, “ये पांच सौ रूपये और रख लो, मगर अल्लाह के वास्ते मुझे यह रिकार्ड दे दो। देखो इससे ज़ियादा पैसे इस वक्त मेरे पास नहीं हैं। ये गीत मेरी उम्रभर की तलाश है।” उसने अपनी सारी खाली जेबें शबाना को दिखाते हुए, यकीन दिलाने की चेष्टा की।

“बहुत खूब! कला के सच्चे कद्रदान हो! ले जाओ ये रिकार्ड और ग्रामोफोन भी।” शबाना ने पैसे लौटाते हुए कहा, “हमारी तरफ से ये सौगात तुम्हारी दीवानगी के नाम।”

“मगर ये पैसे क्यों लौटा रही हो?” वह व्यक्ति बोला।

“हम बाज़ारू औरतें ज़रूर हैं, मगर कला हमारी आत्मा में बसती है और हम कला का सौदा नहीं करती।” शबाना ने बड़े गर्व से कहा।

***

Language: Hindi
1 Like · 691 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
View all

You may also like these posts

लिखे को मिटाना या तो शब्दों का अनादर है या फिर भयवश भूल की स
लिखे को मिटाना या तो शब्दों का अनादर है या फिर भयवश भूल की स
*प्रणय प्रभात*
वीर सैनिक
वीर सैनिक
Kanchan Advaita
एक संदेश युवाओं के लिए
एक संदेश युवाओं के लिए
Sunil Maheshwari
हम मोहब्बत की निशानियाँ छोड़ जाएंगे
हम मोहब्बत की निशानियाँ छोड़ जाएंगे
Dr Tabassum Jahan
महाभारत का युद्ध
महाभारत का युद्ध
SURYA PRAKASH SHARMA
*त्योरी अफसर की चढ़ी ,फाइल थी बिन नोट  * [ हास्य कुंडलिया 】
*त्योरी अफसर की चढ़ी ,फाइल थी बिन नोट * [ हास्य कुंडलिया 】
Ravi Prakash
सरपरस्त
सरपरस्त
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
ऐसे क्यों लगता है,
ऐसे क्यों लगता है,
Kanchan Alok Malu
प्यार भी खार हो तो प्यार की जरूरत क्या है।
प्यार भी खार हो तो प्यार की जरूरत क्या है।
सत्य कुमार प्रेमी
चौपाई
चौपाई
seema sharma
"वसीयत"
Dr. Kishan tandon kranti
आसान नहीं होता
आसान नहीं होता
Surinder blackpen
कुंडलिया
कुंडलिया
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
मरने के बाद करेंगे आराम
मरने के बाद करेंगे आराम
Keshav kishor Kumar
मंज़िलों से गुमराह भी कर देते हैं कुछ लोग.!
मंज़िलों से गुमराह भी कर देते हैं कुछ लोग.!
शेखर सिंह
चुनौती  मानकर  मैंने  गले  जिसको  लगाया  है।
चुनौती मानकर मैंने गले जिसको लगाया है।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
बचपन
बचपन
अवध किशोर 'अवधू'
अब तुझे रोने न दूँगा।
अब तुझे रोने न दूँगा।
Anil Mishra Prahari
आधुनिक दान कर्म
आधुनिक दान कर्म
मधुसूदन गौतम
जिंदगी की हर कसौटी पर इम्तिहान हमने बखूबी दिया,
जिंदगी की हर कसौटी पर इम्तिहान हमने बखूबी दिया,
manjula chauhan
789P là một trong những sân chơi trực tuyến được đông đảo ng
789P là một trong những sân chơi trực tuyến được đông đảo ng
789P
राम–गीत
राम–गीत
Abhishek Soni
रीत की वात अवं किनखs भावज
रीत की वात अवं किनखs भावज
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी "
साइड इफेक्ट्स
साइड इफेक्ट्स
Dr MusafiR BaithA
मैंने एक चांद को देखा
मैंने एक चांद को देखा
नेताम आर सी
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
छिपी रहती है दिल की गहराइयों में ख़्वाहिशें,
छिपी रहती है दिल की गहराइयों में ख़्वाहिशें,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मेरे पास कुछ भी नहीं
मेरे पास कुछ भी नहीं
Jyoti Roshni
बे-ख़ुद
बे-ख़ुद
Shyam Sundar Subramanian
ज़िन्दगी का मुश्किल सफ़र भी
ज़िन्दगी का मुश्किल सफ़र भी
Dr fauzia Naseem shad
Loading...