कता
गिरा कर मुझको संभल गया कोई
और हद से आगे निकल गया कोई ।
मैं तो पड़ा रहा किसी हाथ के लिए
देख मुझको रास्ता बदल गया कोई ।
-अजय प्रसाद
गैरों से है कितना लगाव
और अपनो से मनमुटाव
देते है वो उलाहने अक़्सर
जब भी मिलता है दाव ।
टीसने लगें हैं रिश्ते अब
बनके दिल मे नासूर घाव ।
-अजय प्रसाद
चैनलों पे चर्चे हैं आजकल
बेहूदा अगरचे हैं आजकल ।
सारे नुमाईंदे हैं खोटे सिक्के
तंज़ीमों ने खर्चे हैं आजकल ।
कितने फिक्रमंद हैं ये बिचारे
चुनावी जो पर्चे हैं आजकल ।
-अजय प्रसाद
तंज़ीमो =राजनीतक दलों
कितनी बदनसीब मेरी ये तक़दीर है
जैसे जंग लगी हुई कोई शमशीर है ।
जिंदगी उलझ गई है मेरी हालातों में
गोया कि यारों मसला-ए-कश्मीर है ।
-अजय प्रसाद
हर फरमाइश पूरी कर के भी दूर हैं
औलाद के हाथों माँ बाप मजबूर हैं ।
शिक्षा,कपड़े,मोबाइल महँगे पाकर भी
बच्चे अच्छे संस्कारों से कोसों दूर है ।
-अजय प्रसाद
कितनी बदनसीब मेरी ये तक़दीर है
जैसे जंग लगी हुई कोई शमशीर है ।
जिंदगी उलझ गई है मेरी हालातों में
गोया कि यारों मसला-ए-कश्मीर है ।
-अजय प्रसाद
रिश्ते वो बस रूटीन से निभाते रहें हैं
अक़्सर अपने ज़रूरत पर आते रहें हैं ।
किए ज़ुल्म हम पे जिन्होंने बेहिसाब
करम अपने उंगलियों पे गिनाते रहे हैं
भूलकर मेरी तकलीफें उनके लिए
कितना है किया एहसान जताते रहें हैं
-अजय प्रसाद
तू मुझे अपने दिल में बसा ले ऐसे
रौशनी अन्धेरे को छिपा ले जैसे ।
मैं रहूँगा कब्ज़े में तेरे हमेशा
बंद फूलों में रहते हैं भँवरे जैसे ।
-अजय प्रसाद
खुद अपनी बातों पे भी अमल नहीं करता
ज़ख्मों की नुमाईश मै हर पल नही करता ।
बांट कर रख दे जो इंसानों को इंसानों से
ऐसी किसी बात की मै पहल नही करता ।
-अजय प्रसाद
कांग्रेस,भाजपा,बसपा आप या समाजवादी
हैं सारी राजनीतिक पार्टियां ही अवसरवादी ।
हमदर्दी इनकी जनता के लिए चुनाव तक है
जितने के बाद अवाम तो है फक़त आवादी ।
-अजय प्रसाद
कोशिशों से कामयाब होते देखा है
जर्रे को भी आफताब होते देखा है ।
तुम कहते हो शायरी से क्या होगा ?
मैंने गज़लों से इंकलाब होते देखा है ।
-अजय प्रसाद
अब मुझे किसी सहारे की ज़रूरत नही है
डूबती नईया हूँ किनारे की ज़रूरत नही है ।
ढल गई उम्र जरूरतों को पूरा करते-करते
गुजरने वाला हूँ गुजारे की ज़रूरत नहीं है ।
-अजय प्रसाद
रिश्तों मे रफ्ता-रफ्ता अब दरार आ गई
बागों में नफरत के भी है बहार आगई ।
रहते थे कभी मिलजुलकर हम सब यहाँ
अब तो शिकवे भी दिलों में हज़ार आ गई ।
-अजय प्रसाद