कतराने लगे है लोग
कतराने लगे है लोग
अब तो किसी को पानी पिलाने से भी कतराने लगे है लोग !
क्या कहे सामूहिक भोज भी मुँह देख खिलाने लगे है लोग !!
दिखावे का चलन है यारो श्रद्धा में भी दिखावा नजर आता है !
अब तो कन्याओ को भी गिनती करके जिमाने लगे है लोग !!
ठाठ बात का दीवाना है जमाना, कहते है की शान से जीते है !
कर चार पूड़ियों का दान, मुहल्ले भर में गिनाने लगे है लोग !!
वैसे तो लगाते है पंडाल सड़क और चौराहो पर भोग के लिए
जरा दुबारा कोई मांग ले तो, झड़प कर भगाने लगे है लोग !!
पुण्य कमाने के लिए, न अब दिल है, ना पैसा, लोगो के पास
अब तो बस वाहवाही लूटने के लिए धर्म निभाने लगे है लोग !!
रसूख देख बनाते है रिश्ते नाते, नियत और शराफत बेमानी है !
निजी जिंदगी में भी अमीरी गरीबी का फर्क दिखाने लगे है लोग !!
बुरा लगे तो माफ़ कीजियेगा दोस्तों, जो दीखता है बोलता हूँ
सच्चाई पे “धर्म” की जमाने में, विरोध जताने लगे है लोग !!
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डी के. निवातिया