कड़वा सच (अतुकांत हास्य कविता)
अतुकांत कविता
“””””””””””””””””””
कड़वा सच(हास्य कविता)
■■■■■■■■■■■■■
एक सरकारी कर्मचारी
रिटायर होने के अगले दिन ही मर गया,
बेटे- बहुओं ने विलाप करते हुए कहा
यह एक दिन हमारे जीवन में कितना बड़ा
विश्वासघात कर गया।
पिताजी। अगर आप
कल इस दुनिया से चले जाते,
तो आप मरकर भी हमारे काम ही आते।
हम तो पिछले एक साल से
आपकी वीरगति की उम्मीद लगाए थे,
आपको जरा भी खांसी, जुकाम, बुखार होता
तो हम खुशी से खिलखिलाए थे।
फिर भी आप नहीं चल बसे
ठीक हुए ,और फिर पहले की तरह हँसे ।
याद उसे किया जाता है
जो परिवार के लिए शहीद होता है।
मौत आयी तो एक दिन जाना ही था
मगर फिर ऐसे जाते,
कि सरकारी नौकरी पर जाते-जाते बेटा या बहू को लगवाते।
वे मृतक आश्रित कहलाते ,
हर महीने जब भी
सरकारी वेतन निकालकर लाते
आपको याद करते हुए आते ।
पिताजी ! आप टाइम से योजना बनाकर काम करते ,
तो इस तरह बेमौत नहीं मरते।
फिर एक गलती आपने और करी
फेफड़ों में आखिरी सांस सोमवार को भरी
अगर शुक्रवार रात को मरते,
तो हम शनिवार – रविवार ठाठ से शोक तो करते ।
अब प्राइवेट नौकरी में
सोमवार को छुट्टी लेकर
आपका क्रियाकर्म करूंगा ,
यानि पहले दिन के शोक में ही
वेतन कटने का जुर्माना भरूँगा।
पिताजी! आप ही बताइए
हम अपना वेतन कटवाकर
आपका कितने दिन शोक मनाएं?
पहला ही दिन भारी पड़ रहा है
सोच रहे हैं कि “तीजे” के बजाय “दूजा” करके कल ही निबटाएं
और नौकरी पर जाएं।
पिताजी ! आप तो जानते हैं कि आजकल गृहस्थी चलाना कितना भारी है ?
बिजली का बिल और बच्चों की स्कूल की फीस ही
अपने आप में बहुत बड़ी जिम्मेदारी है।
मकान को लोन पर खरीदा था
किस्त अभी तक पूरी नहीं चुकाई है,
कार खरीदने ही तो हिम्मत भी नहीं हो पाई है।
अगर कभी भी हम पति- पत्नी की
तबियत खराब होती है
तो दिल पहले घबराता है,
क्योंकि मध्यम वर्गीय परिवार
आजकल अस्पतालों के महंगे खर्च कहाँ उठा पाता है।
यह तो सिर्फ दिल की बातें थीं
जो आपसे चुपके से शेयर की थीं
वरना इन्हें खुल कर कहो तो लोगों को अखरता है
कड़वा सच कौन लाइक करता है ?
■■■■■■■■■■■■■■■■
रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451