कठिनाइयाँ डरा रही है
कठिनाइयाँ डरा रही है मत पिघला चट्टान को।
काँप उठा फिर गगन रोके ना कोई अरमान को।
रूकना ही नहीं, थकना ही नहीं, झुकना ही नहीं,
अभी और हवा देगे हम चाहतों की उड़ान को।
है जो वक्त बुरा और कातिल भी सामने तो क्या,
हौसला के दम पर उड़ेगें अगम्य आसमान को।
राहों में तो रोज ही मुश्किलें मिलती रही हमें,
हम तो कल भी थे आज भी खड़े हैं इम्तिहान को।
राह में ना रूकेगी कभी है लक्ष्य पर निगाहें,
आने ना दूँ कभी भी पैर या मन में थकान को।
ख्वाहिशें ये बुलंदियों की कभी भी छोड़ते नहीं,
जबकि जानते हैं सब ही यहाँ शिखर के ढलान को।
है तन्हा गुदड़ियों में अभी कलंदर – सी जिन्दगी,
अपनी मुट्ठी में कैद कर लूँ मगर इस जहान को।
-लक्ष्मी सिंह