कठिनताओं की आवाजाही हीं तो, जीवन को लक्ष्य से मिलवाती है।
कठिनताओं की आवाजाही हीं तो, जीवन को लक्ष्य से मिलवाती है,
धरातल को मिलती पीड़ाएँ हीं, उसकी उर्वरता को बढ़ाती है।
पथ की सुगमताएँ, पथिक को चलना तो सिखलाती हैं,
पर ठोकरों की भेंट मिले तो, यात्रा सार्थकता को पाती है।
सूरज हर क्षण संग जो हो तो, नींदें कहाँ फिर आती हैं,
दीये की रौशनी का मूल्य, स्याह अन्धकार हीं तो समझाती है।
ठहरे जल की नियति है, जो दुर्गति की दिशा में पहुंचाती है,
बहती नदी की शक्ति देख जो, पापों को धोकर दिखलाती है।
गति लहरों की मद्धम हो तो, मृत्यु में जा कर वो समाती है,
पर संघर्षशील बवंडर का रूप हो जब वो, कश्तियों को तलहटी में सुलाती है।
जो बंद द्वारों पर शिथिल हो बैठे, तो असफलता व्यंग्य बनाती है,
निश्चय में दृढ़ता का भाव हो तो, नव-आयामों की श्रृंखला लग जाती है।
संबंधों में छल का समावेश हीं तो, कठोरता संवेदनाओं की बढ़ाती है,
पर परिष्कृत से अपने-परायों के, सत्य-असत्य से भी मिलवाती है।
प्रतिबिम्ब में परिवर्तित होती ये छवि स्वयं की, जीवन की नश्वरता दर्शाती है,
‘आदि हीं अंत है’ इस शाश्वत कथन की, प्रमाणिकता को सिद्ध कर दिखलाती है।