कठपुतली
कठपुतली
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लगता है कभी
ज़िन्दगी है एक
घने जंगल
हूँ मैं उस जंगल
की यात्री.
घने जंगल की
अंधेरापन में
इक जुगुनू की
रौशनी ही
राह दिखाती है
मुछे प्रतीक्षा की.
नहीं पता है मुछको
क्या सिखाती है
ज़िन्दगी रोज.
क्या पता है मुछको
क्या क्या सहना पड़ेगा
राह में ज़िन्दगी की.
कभी धूप है
तो कभी वर्षा घनघोर
कभी छोम्का और
कभी सुहानी हवा.
मैं हूँ अकेली यात्री
इस घने जंगल की
कठपुतली हूँ
मैं किस्मत की
हाथो की.