कठपुतली न बनना हमें
आज कल के इस दौड़ मे
सब रुझान करता खिदमत
कैंकर्य ही देश में सर्वोपरि
सब चाहता यही खलक में
दूसरे के पाणि की कठपुतली
दूजे के अवर में वृत्ति करना
आज कल सह्य कर रहे लोग
कठपुतली न बनना हमे ….
बहुधा इस मुल्क, जहां मे
कोई भी किसी के परवश
कृत्य न केय अमुक आभा
वरन वो निज, स्वजनों की
सबब से करते रहते इंद्रिय
बिल्कुल कठपुतली का तरह
दूजे के सैन पर चलना पड़ता
कठपुतली न बनना हमें ….
भारत जैसे विराट, दीर्घ देश में
बेरोजगारों की संख्य न किंचित
बी० ए०, एम० ए० करके मनुज
निजों की वृत्ति एवं अभिजन को
कार्यान्वयन हेतु करते कोई कार्य
चाय फ़रोशी, तो कोई पकौड़े की
निज श्रम कर पा रहे श्रृंग यहां
कठपुतली न बनना हमे ….
अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार