कट कर जो क्षितिज की हो चुकी, उसे मांझे से बाँध क्या उड़ा सकेंगे?
किनारे छोड़ आये थे, कि अनंत तक बहा करेंगे,
सुकून की तलाश में, कब तक रूह को फ़ना करेंगे?
बंजरों ने तबाही ला हीं दी, फिर हुई बारिश का क्या करेंगे,
पंछी तो कब के उड़ गए, खाली बसेरों को बस अब देखा करेंगे।
नसीबों में सफ़र लिखे गए हैं, फ़िर ठहर-ठहर कर क्यों चलेंगे,
रास्ते थमने के बाद भी, अब कदम रुकने से सहमा करेंगे।
बादलों ने दिन में शाम कर दी, पार उसके आसमां बन मिला करेंगे,
जब खुद में तुझको पा हीं लिया, तो आवारगी में क्यों भटका करेंगे?
रात पिघल कर रो पड़ी, नम आँखों से क्या सजदा करेंगे,
ख्वाहिशें भी चुभने लगीं हैं, टूटते तारे को देखने से अब हम बचेंगे।
मन ने पलकें मूँद ली, बैरागी बन अब हम जिया करेंगे,
कट कर जो क्षितिज की हो चुकी, उसे मांझे से बाँध क्या उड़ा सकेंगे?