कटु सत्य….
बदनीयती खत्म कर देती है दवाओं का असर।
जब हम छोड़ते नहीं सगे से बईमानी में कसर॥
डर नहीं रहा कोई तुमसे, अगर वह खामोश है।
स्वान पर पत्थर फेंकने का परिणाम जानता है॥
स्वार्थ के अंधे से वह अक्ल का अंधा अच्छा है।
समझ कर किए कुकर्मों का माफी नहीं जहां में॥
तेरे जीवन का सुख, नेक नियति कि वरदान है।
पा रहे जो दुख तुम, वह बेईमानी का प्रमाण है॥
भर रहे हो तिजोरी, छीन कर निवाला किसी का।
तेरी संतति भोगेगी, सजा तुम्हारे किए कर्मों का॥
कितने किले ढ़ह गए, कितने कोठी सुनसान हुए।
छली मानव अंदर देखें, तेरे कितने नुकसान हुए॥
धन अपनी वैभव अपनी किसे तुम दिखलाओगे।
नहीं रहेगा अपना कोई, किसको तुम सुनाओगे॥
देना होगा, सभी को अपने हर कर्मों का हिसाब।
बोए हो उसी के फसल को काटना होगा जनाब॥
आज तक न छोड़ा है, न यह छोड़ेगा किसी को।
निज कर्मफल है, कभी बख्शेगा नहीं किसी को॥
परनिंदा के सुख में, क्यों अपना सुख गवाते हो।
बुरे का हो भला, क्यों अपने पर संकट लाते हो॥
कितने राजा रंक हुए, और बलवान हुए बलहीन।
काल चक्र में योद्धा पीस गए होकर शस्त्र विहीन॥
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