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9 Sep 2021 · 1 min read

कई दिनों से !

शीर्षक- कई दिनों से

विधा- कविता

परिचय- ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर राज.332027
मो. 9001321438

कई दिनों से आलू देखा,
सब्जी में टमाटर देखा।
पेट में होती गुड़गुड़ को,
मुझे मेरी भूख ने देखा।

होठों पड़ी पपड़ी से मैंने,
भूख से घुटते दम को देखा।
फीकी आँख के गर्म आँसू में
उस गरीब को मरते देखा।

युवा मुख की गरीब जीभ में,
अपनों से मिटता संसार देखा।
दया माँगते धूजते हाथ में,
मिट रही मानवता को देखा।

नसीब न होती दुख से भी रोटी,
भूख पर फँदे रचते अमीर देखा।
माया से लुट रही होती काया,
गिरा हुआ ऐसा संसार देखा।

पास बिठाकर लूटने वाले,
कपटी तेरा भी हर वार देखा।
भूख में थी फरियाद तुच्छ सी,
जग में लुटती अस्मत को देखा।

पनीर पराठें न थी मेरी इच्छा,
पेट बिलबिलाती भूख ने देखा,
कई दिनों से आलू देखा,
सब्जी में टमाटर देखा।

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 404 Views
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