और मैं हूँ
ग़मों का काफिला है और मैं हूँ
सफर काँटों भरा है और मैं हूँ
नहीं छोड़ा है मैंने मुस्कुराना
सजा का सिलसिला है और मैं हूँ
गुजारी ज़िन्दगी है मैंने ऐसे
मेरा मैं लापता है और मैं हूँ
कला मुझको मिली कितनी बड़ी है
कि मन टूटा हुआ है और मैं हूँ
मेरी बर्दाश्त की भी देखिये हद
न जख्मों की दवा है और मैं हूँ
करें पांवों को कितना शूल घायल
गुलों का हौसला है और मैं हूँ
ये भवसागर करूँगी पार हँसकर
मेरी ही ‘अर्चना’ है और मैं हूँ
21-08-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद