और मैं बहरी हो गई
और मैं बहरी हो गयी
जब तूने मुझ पर ,मेरे चरित्र पर सवाल उठाए
एक बार नहीं बार बार ,
मैं न रोई ,न चिल्लाई,!!!!
बस!!!मौन हो गई
बस अंदर से टूट गई।
बहुत रातें ,नहीं साल,मैं सोई नहीं।!!
पागलों की तरह बैठ कर सोचती रहती
कहां ग़लत थी मैं??
जिस दर्द से मैं गुजरी, कोई उसकी शिद्दत को
न समझा!!!!
आंसू आंखों में जमने लगे तो पत्थर हो गई मैं
खुद को संभाला,नये सांचे में ढाला।
मर्द ऐसी मानसिकता क्यों रखता है??
समझ नहीं सकी मैं??
बहुत देर तुम सबूत ढूंढते रहे
लेकिन अगर होता ,??तो मिलता !!
मैं नहीं रुकीं ,सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर भी
बवाल मचाया था तूने ,मेरी शायरी लिखने पर भी।
लेकिन मैं नहीं रूकी।न रुकूंगी कभी।
लिखना मेरा जनून है!!
मेरी रूह की खुराक।
क्यों रूकूं मैं??
मुझे बढ़ना है आगे
खंगालना है क्षितिज को
मैं अब नहीं रूक सकती।
क्यों अब मैं **बहरी** हो गई हूं।
सुरिंदर कौर