और नहीं बस और नहीं, धरती पर हिंसा और नहीं
और नहीं बस और नहीं, धरती पर हिंसा और नहीं
मानवता चिथड़ी चिथड़ी, मजहब की दीवार खड़ी
जाति नस्ल भाषा अंचल पर, हिंसा होती घड़ी घड़ी
सीमाएं सब टूट रहीं, धरती सिसक रही है पड़ी पड़ी
मानव अधिकारों पर करती,बहस ये दुनिया बड़ी बड़ी
दुनिया की सरकारें, व्यवस्था देख रहीं हैं खड़ी खड़ी
नहीं कोई हल निकल रहा, बातें करते हैं गली सड़ी
युद्धों को आतुर है दुनिया, दिखता अब कोई ठौर नहीं
स्वार्थी दुनिया के अन्धकूप में, मानवता का दौर नहीं
और नहीं बस और नहीं, धरती पर हिंसा और नहीं
हिंसा से हिंसा होती है, बात में दम है तोड़ नहीं
और नहीं बस और नहीं,मानव हत्याएं और नहीं
सुरेश कुमार चतुर्वेदी