और क्या अब चाहिये
ज़िन्दगी रब की बदौलत और क्या अब चाहिये
वो ही करता है हिफ़ाज़त और क्या अब चाहिये
मिल गई तुझको सदारत और क्या अब चाहिये
पर अना रखना कभी मत और क्या अब चाहिये
दो जहाँ मेरे हुये हैं और ख़ुशियाँ साथ हैं
पास है तेरी मुहब्बत और क्या अब चाहिये
छोड़कर माँ-बाप को परदेस जाकर के रहा
लौट आया है गनीमत और क्या अब चाहिये
फ़ायदा क्या नाम का बदनाम होकर गर हुआ
मिल गई वैसे तो शोहरत और क्या अब चाहिये
जो कमाया लुट गया औ’र मुफ़लिसी भी आ गई
जान है फिर भी सलामत और क्या अब चाहिये
नाख़ुदा ही बन गया है रहनुमा मेरा अभी
अब तो आयेगी न आफ़त और क्या अब चाहिये
झांककर आँखों में देखा तो नशा तारी हुआ
मयकशी आँखों की हरकत और क्या अब चाहिये
जो भी करता काम है ‘आनन्द’ होता फ़ायदा
हो रही है ख़ूब बरकत और क्या अब चाहिये
– डॉ आनन्द किशोर