औरत
औरत
औरत कभी माँ है कभी बहन,
कभी बेटी तो कभी पत्नी या प्रेमिका
कोई ये क्यों नही समझता कि
इन सबसे अलग
औरत एक औरत भी है।
जो अपने आप में जीती है
अपने आप में मरती है
उफ ! भी नहीं करती है
और पुरूष के अहं को टूटने से बचाए रखती है।
औरत ने पाई है मिट्टी जैसी प्रकृति टूटते ही,
अपने आँसुओं से गूँथेगी खुद को और
जुड़ जायेगी नई परिस्थितियों से।
औरत ने पाई है पानी जैसी प्रकृति
जो ढाल लेती अपने को हर एक नए सांचे में।