“औरत”
“औरत”
सुनो औरत की तो कहानी ही अलग है
सुख हो या दुख वह सदैव मुस्कुराती है
मां, बेटी, पत्नी, बहन हर रोल अदा करती
सब ग़म को ख़ुशी खुशी सह जाती है,
दिन, रात सब एक जैसा है इसके लिए
भोर फटते ही वह झटपट उठ जाती है
बच्चे लेट ना हो जाएं स्कूल जाने के लिए
इसलिए भाग दौड़ कर टिफिन बनाती है,
विश्राम करना तो मीनू ने सीखा ही नहीं
सुबह से शाम काम करते ही हो जाती है
स्कूल जाते ही बच्चों के अगली तैयारी शुरू
पति के लिए गरमा गरम खाना बनाती है,
पेट भर कर सभी घर परिवार वालों का
साफ सफाई के काम में फिर जुट जाती है
काम हुआ ही नहीं था ख़तम बच्चे आ गए
ऐसे ही रोजाना शाम होती चली जाती है,
बीमार हो जाए कभी तो भी काम करती
परिवार की बीमारी से लेकिन टूट जाती है
कहने को तो दिल से कमजोर होती औरत
कठिनाई में लेकिन पहाड़ भी बन जाती है,
हर परिस्थिति का डट कर सामना करती
जरूरत पड़ने पर मर्द भी बन जाती है
थकती नहीं कभी, कभी हार नहीं मानती
अरे इसीलिए तो वह औरत कहलाती है।