औरत हूं मैं✍️❣️
औरत हूं मैं!!……
इसलिए चार दीवारों के अंदर हूं,
सहूं तो अच्छी हूं,
बोलूं तो बदतमीज हूं,
लडू तो लड़ाकू,
झगड़ालू हूं मैं,
क्योंकि औरत हूं मै…….
औरत हूं मैं…
घूंघट में रहती मैं,
सिर झुकाऊं तो संस्कारी हूं,
किसी की तरफ देखूं तो बदचलन हूं मै,
बराबर में बैठूं तो का बेहया हूं मैं,
क्योंकि औरत हूं मै…..
औरत हूं मै…
पराए घर की हूं मैं,
ससुराल में रहूं तो तेरा घर नही,
मायके में रहूं तो तेरा घर नही,
कोई घर नहीं है इसलिए बेघर हूं मै, क्योंकि औरत हूं मै…..
औरत हूं मै…
पढ़ी-लिखी हूं तो ज्ञानी और समझदार हूं मै,
पढ़ी-लिखी नही हूं तो अनपढ़ हूं मै,
गुण है तो गुणी हूं मै,
गुण नही है तो गुणहीन हूं मै,
क्योंकि औरत हूं मै….
औरत हूं मै…
जन्म दूं तो सुखदात्री हूं मैं,
जन्म न दूं तो अभागिन हूं मैं,
हर बदलते समय कि परिभाषा हूं मै, क्योंकि औरत हूं मै…
औरत हूं मै…
सच कहा जमाने ने कि औरत हूं मैं,
हां औरत हूं मैं पर किसी से कम नहीं हूं,
बेटी बहन पत्नी मां हर रूप में ढल जाती हूं ,
बेटी, बहन, पत्नी, माँ किसी बात का हक़ न है,
हां औरत हूं मैं नव जीवन की आशा हूं मैं क्योंकि औरत हूं मै…..
~स्वरा कुमारी आर्या✍❣