औरतें
काम पर जाती हैं औरतें,
दफ़्तरों से अस्पतालों तक,
स्कूलों से काॅलजों तक,
बिल्डिंग से पुल बनाने तक,
खेती से कामवाली बाई तक,
हर स्थान पर अनेक रूपों में,
काम करती दिखती हैं औरतें,
और –
बहुधा यही औरतें शाम ढले,
मिलेंगी छोटे-बड़े घरौदों में,
उसी तत्परता एवं निष्ठा से,
महसूस न किया जानेवाला,
अवैतनिक ओवरटाइम करते हुए….!!
रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत).
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार).
दिनांक :- ०१/०५/२०२२.