औरतें बहोत जल्दी रो देती है
लोग कहते है औरतें बहोत जल्दी रो देती है।
सच है वो अपने सारे गम अपने आँचल में समेट लेती है।
किसी से कुछ कहतीं नही बस चुप हो लेती है।
अपनी ही बनाई एक छोटी सी दुनियां में खो जाती है।
पति ,परिवार ,बच्चे इन सब में ही गुम हो जाती है।
मान लेती है इन सबको ही दुनियां अपनी
बस जाती है किसी छोटे से घरौंदे में
सभी को अपना लेती है।
ढलकर नए परिवेश में चाहे अस्तित्व अपना
बदल डालती है।
है स्वामिनी फिर भी गृहकार्य सारे कर जाती है।
अनदेखा कर खुद को ख्याल सबका रख लेती है।
भुलकर अपने सारे शौक़ मस्तियाँ संजीदा बन जाती है।
फिर भी समझ पाते है कुछ ही उनके इस त्याग की वो
अपने भीतर से सब खो रही होती है।
काश मिल सके सम्मान और प्यार उनको भी अपने हिस्से
का जिसकी वो हक़दार होती है।
“कविता चौहान”
स्वरचित