औकात हम इंसानों की
वाह ! री कुदरत ,
तूने हम इंसानों को ,
हमारी असली औकात दिखा दी।
छेड़ -छाड़ तेरे अस्तित्व के साथ ,
उसकी किस रूप में सजा दी।
गुमान बहुत था ,
अपनी इंसानी फितरत में छुपी ,
नाकाम शक्तियों का ,
बिना अस्त्र- शस्त्र ही,
मौन प्रहार करके ही,
सारी दुनिया हिला दी।
तूने हम इंसानों को,
हमारी असली औकात दिखा दी।
गुमान बहुत था,
अपनी व्यस्त खोजी प्रवृति का
बिना कुछ किए ही ,
नन्हे वायरस को भेज
व्यस्त दिनचर्या की धज्जियां,
सहज ही उड़ा दी।
तूने हम इंसानों को,
हमारी असली औकात दिखा दी।
गुमान बहुत था,
विमान बनाकर,
आसमान में उड़ने का।
मनचाही दिशा में बेवक्त, उड़ने का।
बिना कैंची ही कतर डाले पंख,
नन्हीं सहमी सी चिड़िया को ,
उन्मुक्त गगन की सैर करा दी।
तूने हम इंसानों को,
हमारी असली औकात दिखा दी।
गुमान बहुत था,
भौतिक भोग विलास का,
लक्जरी कार में सवार हो,
क्लब, पांच सितारा होटलों में,
जीवन यापन का,
चुटकियों में दहशत भर,
दिलों में रेखा सात्विक आहार,
उच्च विचार , रिश्तों में बंध जीवन यापन की कला सिखा दी।
तूने हम इंसानों को,
हमारी असली औकात दिखा दी।