ओ मेरे साथी ! देखो
ओ मेरे साथी ! देखो
किस हाल में जी रही हूँ मैं।
तेरे बिन देखो मेरे साथी
बिन जिदंगी,जीवन जी रही हूँ मै।
तुम क्या गए इस दुनिया से
सबकुछ मेरा चला गया।
सावन के इस मौसम में
सुखी पड़ी हुई हूँ मै।
फूलों की पत्तियो की भाँति
टूटकर बिखर गई हूँ मैं।
जैसे-तैसे तेरे बिन साथी
खुद को समेट रही हूँ मैं।
पतझर भरकर जीवन में,
जीवन गुजार रही हूँ मै।
तुम थे तो घर,घर लगता था।
तेरे होने से रौनक रहता था।
घर के हर कोने – कोने में
एक हलचल रहा करता था।
तेरे प्यार की खुशबु से
हर एक कोना महकता था।
चारों तरफ तेरी आवाज
हर कोने से गुंजा करता था।
आज उसी आवाज को साथी
खामोशी में ढूँढ रही हूँ मै।
आंखो मे आँसु भरकर,
इन बेजान दीवारो में साथी
तुम्हें तलाश रही हूँ मै।
तेरे होने का एहसास ओ साथी,
कोने-कोने मे ढूँढ रही हूँ मै।
तुम दोगे कहीं से मुझे आवाज
इस आस लिए जी रही हूँ मै।
ओ मेरे साथी देखो,
किस दर्द से गुजर रही हूँ मै।
बिन तेरे ओ मेरे साथी
किस हाल में जी रही हूँ मै।
अनामिका