ओ! मेरी प्रेयसी
ओ! मेरी प्रेयसी नादान जलवे दिखा रही है।
बहार आने से पहले बहार जा रही है।।
दब्बु पन में संकट यूं ही बना डाला ,
समझ कर भी न समझ सके मधु रस प्याला।
भंवरा गुंजार करें मधुवन से पड़ा पाला ,
तितली की एक झलक ने भंवरे को जला डाला ।
शायद भंवरे को अब भी जन्नत नजर आ रही है ।।
ओ! मेरी प्रेयसी…
ख्याल में खोए चालक ने नभ में टकटकी लगाई,
गगन में ही उसको अब मंजिल ही नजर आई ।
इस कदर को विफर गया, सोचत बावरा मन माहीं,
अमृत बूंद घटा से घर में अकस्मात ही गिर आई।
शायद पिपासे चातक की घटा ही प्यास बुझा रही है।।
ओ!मेरी प्रेयसी —
सोचा न समझा तन बन तिनका मरुस्थल मरीचिका में,
इस कदर ठण्डक मारुत आई ऊसर वाटिका में।
अचरज कृपा कुदरत की कपूर बदला ज्वाला में ,
मिलनसार मिलकर करें मदिरापान मधुशाला में ।
शायद उस मरुस्थली को बोतल में प्रेमिका नजर आ रही है।।
ओ! मेरी प्रेयसी – –
मृग कस्तुरी मृग नाभी में कस्तुरी न नजर आई ,
कस्तुरी ने मृग के अन्दर ही, खुशबू है रखी फैलाई ।
वन वन डोले मृगा न बोले, पगला कहे संसार रीति भाई,
आखेटक आखेट करें जब निज पर पडैं पर छाई ।
शायद उस मृग को अब कस्तुरी नजर आ रही है।।
ओ! मेरी प्रेयसी——-
सतपाल चौहान।