ओ अच्छा मुस्कराती है वो फिर से रोने के बाद /लवकुश यादव “अज़ल”
बड़ी मासूम सी लगती है हर रात सोने के बाद,
ओ अच्छा मुस्कराती है वो फिर से रोने के बाद।
आंखे ऐसी की समंदर खुद में समेट रखा हो जैसे,
देखेंगे कितने सोमवार करती है मेरा होने के बाद।।
रेशमी जुल्फों का पहरा बादलो की घटा जैसा है,
फूल खिल उठते हैं उसके सिर्फ मुस्कराने के बाद।
चहक उठता है बगीचा मेरा उसके दस्तक के साथ,
बसन्त आ जाता है हमारे शहर उसके हंसने के बाद।।
सभी पलकें बिछाएं रहते हैं प्रीत प्रेम के बाग में,
माली रखवाली करता है इस सुनहरे बाग में।
बड़ी मासूम सी लगती है हर रात सोने के बाद,
ओ अच्छा मुस्कराती है वो फिर से रोने के बाद।।
अज़ल ने किया है एक इशारा अपनी कलम से,
रहती है हमेशा जिगर धड़कन के कितने पास में।
चहक उठता है बगीचा मेरा उसके दस्तक के साथ,
बसन्त आ जाता है हमारे शहर उसके हंसने के बाद।।
लवकुश यादव “अज़ल”
अमेठी, उत्तर प्रदेश