ओछी राजनीति
यह मिडिया है या मछली बाजार ,
आरोप प्रत्यारोप की भरमार ।
ना कोई सलीका न संस्कार ।
चिल्ला चिल्ला कर , बोहें तानकर ,
करते एक दूजे से तकरार ।
अपशब्दों का प्रयोग भी करते ,
ना इन्हें शर्म न लिहाज ।
नेताओं को तो एक मंच मिल गया,
अपनी भड़ास निकालने को ।
नेताओं को यह मंच लगे लड़ाई का मैदान ,
अपना अपना रोष निकालने को।
सुन सुन कर यह इनके तमाम शोर शराबे ,
हमने समाचार देखना ही छोड़ दिया ।
समाचार तो क्या देश की राजनीति में ,
रुचि लेना छोड़ दिया ।
चाणक्य जैसे महान राजनीतिज्ञ के देश में ,
यह कैसी ओछी राजनीति ।
देश हित में नहीं है यह ,
यह है देश को डुबोने वाली गंदी राजनीति ।