ऑंखें
तुम्हारे आँखों पे क्या अलंकार लिखूँ
होश रहे तो न स्याह पकडू
नशा भी हाथ पांव जोड़ खड़ी है कतार में
अरे क्या तीव्र अलौकिक सौंदर्य है फलकों पे
फिसल कर मैं भी तो डूब गया इनमें
देखो कहां था आज कामिल बन गया मैं
खैर जो भी हो बल बहत आक्रामक है
पीड़ा ,आंसू के लिए तो किसी बारूद से कम नहीं है
कमबख्त वो नजरें भी अब झुक कर बात करती है
जो बस अपने खौफ से मुझे लहूलुहान करती थी
क्या अदा करूँ इस आँखों के आश्रय
ये ईश्वरीय तत्व से लगते मुझे
कई मिल दूर एक टक आँखों से निहारती वो मुझे और रजनीगन्धा सा महक उठता हूँ
मैं चारोँ फिजाओ में
ये कोई समान्य तो नहीं
आँखों से चुम शीश करती मांँ सी निश्छल प्रेम मुझसे
कैसे न कहू हाँ ईश्वर से भी बहत ऊचे दर्जे पे हो तुम
वो मुस्कुराती आँखों को देख मानो स्वर्ग उत्तर आया हो
बेहद खूबसूरत है पलकों के ऊपर पनपी चाहत तुम्हारी
बस रहो उम्रभर युहीं मुस्कुराती ईश्वरीय आंखे ।