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26 Mar 2022 · 1 min read

‘ऑंखें छलक रही हैं’

ऑंखें छलक रही हैं, सपनों की जान लेकर
तुमको भी क्या मिला है ये इम्तेहान लेकर

किस आग ने किया है इस चांदनी को पीला
अब चाँद भी दुःखी है ये ज़ाफरान लेकर

जलने से पहले दीपक, बाती से कह रहा था
परवाने मिटने आए हाथों में जान लेकर

रचती थी तब मोहब्बत, हाथों में रूह के फिर
उनसे था जुड़ गया जब रिश्ता अमान लेकर

ऑंधी थी एक पल की, टूटी मिली हैं कलियाॅं
रोते मिले शज़र थे, बिखरी सी शान लेकर

देखे तो कोई आकर , ये बेबसी का आलम,
खामोश हम खड़े हैं, मुँह में ज़ुबान लेकर।

दीवारो – दर हैं गुमसुम, मारे गए सब अपने,
है नींव तक भी घायल, खूं के निशान ले कर।

जो कुछ भी तुमने चाहा, सब कुछ वो कर चुके हो,
अब क्या करोगे, बोलो! मेरा बयान लेकर?

जब तोड़ डाले हैं सब, उम्मीद के सितारे,
बोलो करूँ मैं क्या अब, ये आसमान लेकर?

अरमाँ मिटा के मेरे, तुमको हुई तसल्ली,
जैसे कि बाज खुश है, चिड़ियों की जान लेकर।।

स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ

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