* ऐ स्वर्णपिंजर के अनुरागी *
ऐ स्वर्णपिंजर के अनुरागी
क्या तुमने कभी यह सोचा है ?
उन्मुक्त हवा में भी आता है
आनन्द पिंजरे से सतगुणा ज्यादा
मान बैठा स्वर्ण पिंजर को परिधि
इससे उन्मुक्त जहां ऒर भी है
याद रखना ऐ बन्दी पाखी
आजादी में जो आनन्द है
क्या बताऊँ में तुम्हें
स्वयं उन्मुक्त हवा में आके देख
फिर बताना मुझे स्वर्ण पिंजर का सुख
या उन्मुक्त हवा के आनन्द में फर्क
सोचो ऐ बन्दी पाखी यह पिंजर
क्या प्राणों को बचा पायेगा
प्राण है उन्मुक्त हवा में
देह से निकलने के बाद ।।
?मधुप बैरागी