ऐ सावन तू आएगा क्या
सुनो ज़रा मेरे दिल के अरमानों को
इस बार भी अधूरा कर जाएगा क्या
आरजू थी उनके साथ के पुराने दिनों की
फिर से उसी रूप में, ऐ सावन तू आएगा क्या
वो दूर किसी गावँ-कस्बे में होगी कहीं
उनको को मेरी एहसास कराओगे क्या
एक बार भींगो कर उनकी जुल्फों को
काली घनघोर घटा में, ऐ सावन तू आएगा क्या
उनसे कहना बहुत याद आती हैं वो
उन्हें भी पिछली सावन सताती है क्या
जैसे छपक छपक कर चले थे सड़कों पर
वही पल दुबारा लेकर, ऐ सावन तू आएगा क्या
वो नाराज़ हैं मुझसे बहुत इन दिनों
उनको एक बार मनाकर आओगे क्या
कुछ गलतफहमियां हैं जो उनके मन में
धूलकर उन्हें, ऐ सावन तू आएगा क्या
वो रिमझिम रिमझिम बारिश की बूंदों सी
मेरे आंशुओ का आकार बनोगे क्या
उनसे कहना दरिया बन चुका हूँ मैं
मेरी दर्द बताकर, ऐ सावन तू आएगा क्या
कि बरस जाये उनके आंगन में एक बार
बादलों को यह फरमान सुनाओगे क्या
जैसे विरह में बरसे मेरी आँखें सालो साल
मेरी आँशु बनकर, ऐ सावन तू आएगा क्या
एक बार कोशिशें कर जाये दोनों
नफरत की लकीर मिटाओगे क्या
मिल जाये बेवजह फिर से उसी सड़क पर
मिलन की वजह बनकर, ऐ सावन तू आएगा क्या
धरती की बेचैनी तू भी तो समझता है
उनको मेरी भी हालात समझाओगे क्या
कहना लौट आओ, अपना अपना ही होता हैं
ये रिश्ता बताकर उन्हें, ऐ सावन तू आएगा क्या
कवि:- Er. M. Kumar