* ऐ सखी ! ठहर इक पहर ठहर *
ऐ सखी ! ठहर इक पहर ठहर
यादों की दुनियां का सुंदर मंजर
छोटे से दृश्यांकन चित्रयन्त्र पर
अंकित कर लूं यादों का सफर
जब होंगे हम दिन-दिन और बडे
पेड़ो की साक्षी यादों का सफर
निश्छल है सखी अपना प्रेम अमर
नन्हे -नन्हे हाथों का स्पर्श मगर
करता है पुलकित गात अमर
खाना खाने, ना बनाने की चिंता
ना कुछ घर कमाने की चिंता
ऐ सखी तनिक इक पहर ठहर
आंखो में बन नवकंचों-सी चमक
चेहरे पे छायी इक मुस्कान अमर
करलूं कैद दृश्यांकन यन्त्र में अब
ये बचपन की यादों का जो सफर
पलक झपकते जायेगा निकल
इक दिन कर जायेगा विकल
जब होंगे दूर इकदूजे से हम
इस चित्रफलक में देखेंगे हम
प्यारी अकृतिम मुस्कान को हम
जब छाएंगे चिंताओं के बादल
तब टहल टहल फिर टहल टहल
यादों के मंजर में खो जायेंगे हम
ऐ सखी ठहर इक पहर ठहर।।
?मधुप बैरागी