“ऐ वतन, ऐ वतन, ऐ वतन, मेरी जान”
ऐ वतन, ऐ वतन, ऐ वतन,
ऐ वतन, मेरी जान, ऐ वतन,
तुमसे खिलें आंखों में सपने हजार
तुमसे ही संचित है अपना अधिकार
बिन तेरे नही जंचती जीवन का हार
तुम बिन नही जीने का कोई आधार
हूं मै तुमपर समर्पित, रहूं हरदम क़ुर्बान
ऐ वतन, ऐ वतन, ऐ वतन, ऐ वतन
ऐ वतन, मेरी जान, ऐ वतन, ऐ वतन
है तेरा मेरा ये रिश्ता जीवन मरन का
सांस जबतक न टूटे एहसास बंधन का
क्यों हो न कुर्बानियां पावन धरा के लिए
मर मिटूं मैं देश के स्वाभिमान प्यारा के लिए
है नहीं इस मुल्क की एक भी कली बेजुबान
ऐ वतन, ऐ वतन, ऐ वतन,
ऐ वतन, मेरी जान, ऐ वतन।।
रचना- राकेश चौरसिया