ऐ वक़्त !
ऐ वक़्त एक एहसान कर
इश्क़ कर या कर नफ़रत
जो भी कर सरेआम कर
ले कर मज़े हर मोर पर
किस्मत को ना, यूं बदनाम कर
ऐ वक़्त एक एहसान कर
दिया पहरों पहर जब तुझ पर लूटा
अब माटी में सजा, या दे फलक पर बिठा
जो भी तू चाहे
दे, उसे मेरे नाम कर
ऐ वक़्त एक एहसान कर
अपनों को कर ना मुझसे खफा
सपनों को कर ना मुझसे जुदा
दो वक़्त की रोटी तोड़ सकूं
नाते सभी से ज़ोर सकूं
ज़िन्दगी के सच को प्रमाण कर
ऐ वक़्त बस ये एहसान कर
ऐ वक़्त बस ये एहसान कर ।।
– निखिल मिश्रा