“ऐ रे मन”
कोई चाहत
दिल के किसी कोने में
बैठी हुई
छुप-छुप कर
अब भी रोती है,
ऐ रे मन
पागलपन की भी
कोई हद होती है।
तू ही क्यों जागता है
नींद के आक्रोश में
जब सारी दुनिया
मदमस्त होकर सोती है,
ऐ रे मन
पागलपन की भी
कोई हद होती है।
-डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति +
भारत भूषण सम्मान 2022-23 प्राप्तकर्ता।