ऐ जिन्दगी
ऐ जिन्दगी
जख्मों को अब तू नुमाया न कर।
लफ्ज़ों को ऐसे ही ज़ाया न कर।।
सीधी सच्ची बात बोल मुँह पर
बातों को गोल गोल घुमाया न कर।।
झेल रहे है हँस कर ऐ जिन्दगी
पर तू हँसी में आँसू ,मिलाया न कर।।
हकीकते तेरी जब कङवी है तो
मीठे सपने भी तू दिखाया न कर।।
कङी धूप में चलना है हमे तो
चाँदनी का हमपे तू साया न कर।।
पत्थर के बुत मिलेगे बहुत
सजदे में यूँ ही झुक जाया न कर।।
सुरिंदर कौर