ऐ जिंदगी
मुहब्बत से दुनिया किसी की सजाले,
चुराना है ग़र तो ग़मों को चुराले।
नहीं साथ जाएगी धन और दौलत,
कमाना है ग़र कुछ, दुआएं कमाले।
नहीं अब रुकेगा सफ़र मंज़िलों का,
भले दुनिया कितने भी कांटे बिछाले।
ग़मों के अँधेरे रहेंगे यूँ कब तक,
सहर होगी इक दिन मिलेंगे उजाले।
मिले मीत ऐसा जो देखे ज़रा तो
कि कदमों में कितने पड़े मेरे छाले।
मिले कोई रहबर कोई रहनुमा तो,
जो गिरते हुए को ज़रा सा सँभाले।
मुकद्दर में तेरे लिखा क्या है अनिल,
वही जानता है उसी की दुआ ले।
अनिल “आदर्श “