ऐ जिंदगी…(कविता)
ऐ जिंदगी !
तू कितने रंग दिखलायेगी
ऐ जिंदगी !
तेरे इन रंगो से अब
मैं डरने लगा हूं
तू कभी प्यारी थी
न्यारी थी
तेरी मेरे प्रति
खुद्दारी थी
नित बदलते रूप से
अब डरने लगा हूं
तू बदलने लगी
मौसम की तरह
तेरी हर करवट
लगे गम की तरह
हर आहट से मैं
अब डरने लगा हूं
हुआ है तेरा स्नेह
कोसों दूर जबसे
खुशियों की बस्ती
बस गयी दूर मुझसे
तनिक मुस्कान से तेरी
अब डरने लगा हूं
मित्र सब दूर हुए
छोटे सब हुजूर हुए
देख तेरा मज़ाक
चेहरे सब बेनूर हुये
बेरुख़ी तेरी से मैं
अब डरने लगा हूं
तू कभी हसीन थी
लगती आज कमीन है
जमते जहाँ थे पैर मेरे
फिसलन भरी जमीन है
तेरे झकझोरने से मैं
अब डरने लगा हूं…
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— विश्वम्भर पाण्डेय ‘व्यग्र’
कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,
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निवेदन:- उक्त कविता
मेरी मौलिक /अप्रकाशित रचना है ।