ऐ ज़िन्दगी!
कभी निर्विरोध संग बन जाता, तो कभी ये प्रतिपल घोर संघर्ष है।
कभी एकांतवास का क्रंदन है, तो कभी ये परिवार संग में हर्ष है।
अमिट जोश, जुनून व जज़्बे से, तुम सब लगाते रहना पूरा ज़ोर।
संघर्ष, साहस और संकल्प ही, खींचता है जीत को अपनी ओर।
हालातों से लड़ता-भिड़ता रहा, हर जीव तो इसी हाल में जिया है।
ऐ ज़िन्दगी! बता अब क्या कहूँ, तेरे लिए क्या कुछ नहीं किया है?
तुम्हें हर बार जीत नहीं मिलेगी, कभी हार का सामना भी करना।
जो जैसे भी पला हो, सबका भला हो, ये मनोकामना भी करना।
परिस्थितियों में दुखी न हों, इस जीवन को खुश रखना सीखिए।
विकृतियों में ही न फंसे रहें, अपने मन को खुश रखना सीखिए।
मैंने नतमस्तक होकर स्वीकारा, मेरे हिस्से में तूने जो भी दिया है।
ऐ ज़िन्दगी! बता अब क्या कहूँ, तेरे लिए क्या कुछ नहीं किया है?
सबका जीवन तराज़ू जैसा है, ये सुख और दुःख तोलकर देता है।
कर्मों के लिए ये फैसले सुनाता, सब दिया हुआ बोलकर लेता है।
धर्म की परिधि में ही रहते हुए, यों निरंतरता से कर्म करते रहिए।
दबी भावनाओं को समझते रहें, आप हृदय का मर्म भरते रहिए।
कभी खुशियों का मीठा शरबत, कभी ग़म का काढ़ा भी पिया है।
ऐ ज़िन्दगी! बता अब क्या कहूँ, तेरे लिए क्या कुछ नहीं किया है?