“ऐ ज़िंदगी मैं तुझसे बड़ा नाराज़ हूँ”
तूने मेरे दामन को दर्द से भर दिया,
अश्कों से आँखों को भर दिया,
जिन गमो से निकलता है दर्द,
मैं उन गमो की आवाज़ हूँ,
ऐ ज़िंदगी मैं तुझ से बड़ा नाराज़ हूँ,
तेरे लिए मैं बहुत कुछ खोया हूँ,
हर शब किसी कोने में जाकर रोया हूँ,
वजह-ए-गमो से होती है जो बग़ावत,
“साहिब” उस बग़ावत का आगाज़ हूँ,
ऐ ज़िंदगी मैं तुझ से बड़ा नाराज़ हूँ,