ऐ खुदा, सुन ले दुआऐं, ग़म का अब रोज़ा रहे
जिंदगी में हर तरफ बस प्यार ही बिखरा रहे
ऐ खुदा, सुन ले दुआऐं, ग़म का अब रोज़ा रहे
जिंदगी की दौड़ में तो थक गया ख़स्ता बदन
अब बुढ़ापा आ गया पर दिल मेरा बच्चा रहे
गाँठ रिश्तों में पड़ीं है, दूर हैं रिश्तें यहाँ
जोड़ने रिश्तों को फिर भी एक तो धागा रहे
है कई अच्छाइयाँ उनमें तुझे दिखती नहीं
देखने को ऐब खुद के एक बस शीशा रहे
साजिशें कर कर के मुझको वो गिराते रात दिन
की बगावत, फिर बराबर का ही अब सौदा रहे
इक सबक दुनिया को देखो जब सिखाना भी पड़े
तन मेरा लोहा भले हो मन मेरा सोना रहे
और कितना ऐ खुदा मुझको सताएगा बता
जिंदगी रातें अमावस चाँद फिर आता रहे
लोधी डॉ. आशा ‘अदिति’
भोपाल