ऐ .. ऐ .. ऐ कविता
ऐ .. ऐ .. ऐ कविता,
मुझे कवि बना के ही छोड़ोगी।
वीर हास्य व्यंग श्रृंगार,
करूणा के दिशा में ही मोड़ोगी।
ऐ .. ऐ .. ऐ कविता . . . . . .
अरे मैं सीधा साधा,
भोला भाला इंसान हूं,
मुझे साहित्य की भाषा नहीं आती।
खुबसूरती को लफ्जों में,
कैसे बयां करूं,
शब्दों की लड़ियां पिरोई नहीं जाती।
लोग हंसेंगे मुझ पर,
जब मैं कविता पढ़ूंगा।
मेरे बस की बात नहीं है,
कहीं लिखा, कहीं पढ़ा
कहीं बोला,
मुझे कुछ याद नहीं है।
फिर भी तेरे प्यार में,
मैं ये कर जाऊंगा।
भले कुछ न बन पाऊं,
पर कवि तो जरूर बन जाऊंगा।
तेरे लिए मैं हद से गुजर जाऊं,
ऐसा दिवाना बना के ही छोड़ोगी।
ऐ .. ऐ .. ऐ कविता . . . . . .
लोग तो प्यार में,
चांद तारे तोड़ लाने की बात करते है।
जुदा होने के डर से,
एक दूसरे की बांहों में मरते हैं।
तुमसे दूर होने से डरता हूं,
दिवानगी इतनी है, कि दिलोजां से मरता हूं।
चलो तुम पर,
कुछ लिखने की कोशिश करता हूं ,
तेरी सागर सी आंखों में,
डुबने की कोशिश करता हूं।
तैरना मुझे आता नहीं।
और आशिकी है कि जाती नहीं।
बड़े असमंजस में हूं,
रास्ता कुछ सुझाती नहीं।
मैं भले कुछ न कर सकुं,
पर तुम,
कुछ न कुछ करवा के ही छोड़ोगी।
ऐ .. ऐ .. ऐ कविता
नेताम आर सी