ऐहसास
ऐहसास
ऐहसास मत पूछिए…
उस वल्लरी का…
उस बेल के बारे में ही…
सुना है मैने किसी न किसी…
को सहारा बना बढती है…
वृक्ष से लिपटी…
उस में समाहित हो…
अपना सर्वस्व उसे सौंप…
कई दफा तो…
बिन पत्तो की….
उन टहनियों को…
स्वयं लग कर गले…
हरित किया उसने…
ऐहसास पाले थी…
मन के किसी कोने में
शायद…
वो वल्लरी आज…
बागीचे के कोने मे सूखी…
कटी ;उलझी सी संवेदनाओ मे…
आज न किसी वृक्ष का आलिंगन…
न शाखाओ का संग…
जिन्हे पूरित किया था उसने…
अपने आसरे से…
माटी से ही जन्मी थी वो…
जडित ऐहसासो संग…
एकतरफा प्रेम पाले…
हृदय में है ना…!
सुधा भारद्वाज’निराकृति’
विकासनगर उत्तराखण्ड