ऐसे रूठे हमसे कि कभी फिर मुड़कर भी नहीं देखा,
ऐसे रूठे हमसे कि कभी फिर मुड़कर भी नहीं देखा,
वफा की उम्मीद क्या उनसे जिनका जमीर वेवफा हो।
©®कंचन वर्मा
ऐसे रूठे हमसे कि कभी फिर मुड़कर भी नहीं देखा,
वफा की उम्मीद क्या उनसे जिनका जमीर वेवफा हो।
©®कंचन वर्मा