ऐसे थे पापा मेरे ।
त्याग ,बलिदान ,संघर्ष की प्रतिमूर्ति आदरणीय पिता जी ,जिन्होंने में घोर अंधकार में भी हमें अंधकार का कभी भी आभास तक नहीं होने दिया ,खुद दीपक बनकर अपनी रोशनी से हमें आगे बढ़ने का रास्ता दिखाते रहे ,आपके श्री चरणों मे समर्पित काव्यपुष्प-
बन दीप जल अंधेरे में,
जो मुझे रोशनी देते थे।
ऐसे थे पापा मेरे जो ,
घोर तमस हर लेते थे।
वो ही मेरे पालक थे,
वे ही सब कर्ता-धर्ता थे।
मैं उनकी पूजा करता था,
वो मेरे मन के ईश्वर थे।
होता निराश,असफल कभी,
वो ऊर्जावान कर देते थे।कहते
कर मेहनत आगे बढ़ बेटा,
मैं हूँ चिंता न कर बेटा।
मुश्किलों से न घबरा तू,
डटकर सामना कर बेटा।
मंजिल तेरे इंतजार में ,
तेरी राह देख रही बेटा।
देख ,अथक प्रयासों में,
क्या कमी रह गई बेटा।
कर खुद में तू सुधार,
गलती न दोहरा तू बेटा।
जो होगा देखा जाएगा,
तू मेहनत का फल पायेगा।
वो अपनी वाणी,शब्दों से ,
हर पल प्रेरणा देते थे।
वो तो थे नारियल जैसे,
गलती पर तनिक डांटते थे।
बाहर से कठोर थे लेकिन,
अंदर से कोमल मन के थे।
वे ही थे दिनकर मेरे,
वे ही भोर, सवेरे थे।
था उनका ताप प्रबल लेकिन,
प्रकाश ‘दीप’ का वे ही थे।
-जारी
©कुल’दीप’ मिश्रा