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1 Jun 2021 · 1 min read

ऐसी बारिश दें प्रभु

मन की
नगरी मे छाया कुहासा
लगता उठा कोई धुआँ सा
प्रीत की रीति ही अनोखी
तन मन झुलसा जाए
चेहरे में जब चेहरा समाए
जिया मेरा हुलसा हुलसा जाए

पानी पिय प्रेम को मिले
अंग – अंग तर -बतर हुआ जाए
ऐसी बारिश दें प्रभु
जड़ -चेतन सब इतराये
आस लगाये बैठी मेघा
आषाढ सब़ सूखा जाए

79 Likes · 2 Comments · 462 Views
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