ऐसी बारिश दें प्रभु
मन की
नगरी मे छाया कुहासा
लगता उठा कोई धुआँ सा
प्रीत की रीति ही अनोखी
तन मन झुलसा जाए
चेहरे में जब चेहरा समाए
जिया मेरा हुलसा हुलसा जाए
पानी पिय प्रेम को मिले
अंग – अंग तर -बतर हुआ जाए
ऐसी बारिश दें प्रभु
जड़ -चेतन सब इतराये
आस लगाये बैठी मेघा
आषाढ सब़ सूखा जाए