ऐसी दीवाली
पावन ज्योति पर्व संध्या में, हमसब ऐसे दीप जलायें
मिटा तिमिर तन-मन के जन का, जीवन में उजियारा फैलायें
दीप से दीप जलाकर हम, दीपों में यह भाव जगायें
साथ यदि हो सब दीपक का, धरा-गगन सब एक हो जायें
छूटे ना कोई कोना भू का, अम्बर भी ना शून्य हो पायें
रवि-शशि में भी रहे ना अंतर, इस श्रृंखल में दीप सजायें
जलकर पुनः पुनित प्रकाश में, अंतःविकार कीट मर जायें
दुर्गुण दूर हों बू से इसके, सद्गुण की खुशबू महकायें
दिल के दीये स्वतः जलें, फिर तो दिल से दिल मिल जायें
मिटे कालिमा तन-मन की, जन-जीवन में प्रकाश खिल जाये
“सुरेश्वर” भेदरहित;खुशियों की, ऐसी दिवाली प्रतिदिन आये।
हर घर एक-सी दीया व बाती, अंतर्मन के दीप जलाएँ।
-सुरेश्वर मद्धेशिया
महाराजगंज, उत्तर-प्रदेश